पासी समाज के राजा: महाराजा डालदेव पासी का इतिहास

सभी पासी भाइयों को मेरा नमस्कार जैसा की आप सभी अपने समाज के बारे में जानते हैं की पासी समाज का इतिहास वीरता, संघर्ष और गर्व से भरा हुआ है। इस इतिहास में कई शासकों और योद्धाओं ने अपनी अमिट छाप छोड़ी है, और उनमें से एक प्रमुख नाम है महाराजा डालदेव पासी। डालदेव को पासी समुदाय अपने गौरवशाली अतीत के प्रतीक के रूप में सम्मान देता है। उनका जीवन और शासन मध्यकालीन भारत के उस दौर से जुड़ा है, जब क्षेत्रीय शासकों का प्रभाव बढ़ रहा था। हालाँकि उनके बारे में लिखित ऐतिहासिक प्रमाण सीमित हैं, लोककथाएँ, मौखिक परंपराएँ और स्थानीय इतिहास उनकी कहानी को जीवित रखते हैं। डालदेव का संबंध रायबरेली जिले के डलमऊ क्षेत्र से है, जहाँ उन्होंने अपने भाइयों के साथ मिलकर एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की थी।

महाराजा डालदेव पासी का इतिहास

डालदेव पासी और उनके भाइयों का उदय:

महाराजा डालदेव पासी चार भाइयों में सबसे बड़े थे। उनके भाई थे- बालदेव, ककोरन और भावों। लोकमान्यताओं के अनुसार, ये चारों भाई एक साधारण परिवार से थे, लेकिन उनकी वीरता और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें शासक बनाया। डालदेव ने अपने राज्य को चार हिस्सों में बाँटकर अपने भाइयों के साथ मिलकर शासन किया। उनका साम्राज्य गंगा और सई नदी के बीच फैला हुआ था, जो पूर्व में आरख ग्राम से लेकर पश्चिम में खीरों तक विस्तृत था। डालदेव का मुख्य केंद्र डलमऊ था, जहाँ उनका किला लगभग 12 बीघे क्षेत्र में फैला हुआ था। यह किला गंगा नदी के किनारे ऊँचाई पर बना था, जिसके चारों ओर 30 मीटर गहरी खाई थी, जो गंगा के पवित्र जल से भरी जाती थी। किले में सैनिक छावनी भी थी। आज यह किला टीले के रूप में मौजूद है।

पासी समाज का गौरवशाली इतिहास जानें : 

बालदेव ने सई नदी के किनारे अपना किला बनवाया और रायबरेली नगर की नींव रखी। उन्होंने भरौली नामक किला बनाया, जो कालांतर में “बरैली” कहलाया। ककोरन का किला डलमऊ तहसील के सुदमानपुर में था, जो जगतपुर से 12 किलोमीटर दूर स्थित था। सबसे छोटे भाई भावों ने रायबरेली से 20 किलोमीटर पूरब में 200 मीटर लंबा और 200 मीटर चौड़ा मिट्टी का किला बनवाया। भावों ने राजभर पासियों की एक बड़ी सेना तैयार की थी। इन चारों भाइयों ने मिलकर एक समृद्ध और शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित किया।

डालदेव का शासन और युद्ध कौशल:

डालदेव अपने शासनकाल में एक कुशल प्रशासक और योद्धा थे। उनका लक्ष्य अपनी प्रजा की सुरक्षा और समृद्धि था। डलमऊ में उन्होंने व्यापारियों और यात्रियों की सुरक्षा के लिए व्यवस्था की, जिससे यह क्षेत्र एक महत्वपूर्ण केंद्र बना। उनकी सेना में पासी योद्धाओं की बड़ी संख्या थी, जो उनके प्रति समर्पित थे। एक कथा के अनुसार, एक युद्ध में डालदेव का सिर कट गया, फिर भी वे लड़ते रहे। यह कहानी उनकी अदम्य वीरता को दर्शाती है, हालाँकि यह ऐतिहासिक तथ्य से अधिक पौराणिक विश्वास है।

यह भी जानें – Lucknow को बसाने वाले “महाराजा लाखन पासी” का इतिहास ?

डालदेव और डलमऊ का किला:

डलमऊ का किला डालदेव के शासन का प्रतीक था। ऊँचाई पर बना यह किला उनकी रणनीतिक दूरदर्शिता को दिखाता है। किले की मजबूत संरचना और गहरी खाई इसे अभेद्य बनाती थी। यह न केवल सैन्य केंद्र था, बल्कि प्रशासनिक गतिविधियों का भी आधार था। स्थानीय लोग बताते हैं कि डालदेव यहाँ से अपनी प्रजा की समस्याएँ सुनते और त्वरित न्याय देते थे।

यह भी जानें – महाराजा सातन पासी जी का इतिहास जानें :

डालदेव का सामाजिक योगदान:

डालदेव ने पासी समुदाय को संगठित करने और उनकी सामाजिक स्थिति को मजबूत करने में बड़ा योगदान दिया। उन्होंने अपनी प्रजा को खेती, व्यापार और युद्ध कौशल में प्रशिक्षित किया। एक कथा के अनुसार, डालदेव ने “डालदेव ताल” नामक जलाशय बनवाया, जो सूखे के समय किसानों के लिए वरदान था। यह उनकी प्रजा के प्रति चिंता को दर्शाता है।

यह भी जानें – सीतापुर को बसाने वाले महाराजा छीता पासी जी का इतिहास :

इब्राहीम शाह शर्की का आक्रमण और पतन:

महाराजा डालदेव पासी का इतिहास
महाराजा डालदेव पासी का इतिहास

डालदेव और उनके भाइयों का शक्तिशाली साम्राज्य जौनपुर के शासक इब्राहीम शाह शर्की (1402-1440) के लिए काँटे की तरह था। उनकी खुशहाली और संपन्नता ने इब्राहीम को आक्रमण के लिए प्रेरित किया। सबसे पहले, इब्राहीम ने ककोरन के सुदमानपुर पर हमला किया। ककोरन ने भीषण संघर्ष किया, लेकिन लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। इसके बाद इब्राहीम ने डलमऊ पर आक्रमण की योजना बनाई। कई बार वह डालदेव की सशक्त सेना के सामने असफल रहा, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने एक बघेल सरदार को लालच देकर अपने पक्ष में मिला लिया।

बघेल सरदार ने इब्राहीम को बताया कि होली का दिन हमले के लिए सबसे उपयुक्त होगा, क्योंकि उस दिन राजपरिवार जश्न में डूबा रहता है और सेना शराब के नशे में लापरवाह होती है। योजना के अनुसार, रात में उस गद्दार ने किले का पीछे का दरवाजा खोल दिया। अचानक हुए हमले से पूरा प्रशासन हिल गया। इब्राहीम की सेना ने बूढ़ों और बच्चों को भी नहीं बख्शा। धोखे से हुए इस हमले में राजा डालदेव वीरगति को प्राप्त हो गए। जब इब्राहीम राजा की रानियों की ओर बढ़ा, तो दोनों रानियों ने आग में कूदकर अपनी जान दे दी, लेकिन अपने सम्मान पर आँच नहीं आने दी। उनकी इस वीरता को आज भी याद किया जाता है। इस घटना के बाद उस क्षेत्र में होली नहीं मनाई जाती; यह पर्व एक सप्ताह बाद मनाया जाता है।

डालदेव की विरासत और लोककथाएँ:

डालदेव की मृत्यु के बाद भी उनकी कहानियाँ जीवित रहीं। पासी समुदाय उन्हें “डलमऊ का शेर” के रूप में याद करता है। उनकी वीरता और बलिदान की गाथाएँ लोकगीतों में गाई जाती हैं। सिर कटने के बाद भी युद्ध करने की कथा उनकी अमरता का प्रतीक है।

ऐतिहासिक साक्ष्य की कमी और आधुनिक संदर्भ:

डालदेव के बारे में लिखित इतिहास कम है। मध्यकाल में पासी समुदाय के इतिहास को नजरअंदाज किया गया, और ब्रिटिश शासन के “क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट” (1871) ने इसे और दबाया। फिर भी, आधुनिक समय में पासी समाज डालदेव और उनके भाइयों को याद करके अपनी पहचान को मजबूत कर रहा है।

निष्कर्ष: महाराजा डालदेव पासी (Pasi Samaj Ke Raja):

महाराजा डालदेव पासी और उनके भाइयों का इतिहास पासी समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी वीरता, नेतृत्व और बलिदान ने उन्हें अमर बना दिया। डलमऊ का किला और उनकी कहानियाँ उनके अस्तित्व की गवाही देती हैं। इब्राहीम शाह के धोखे से हुए पतन के बावजूद, उनकी विरासत आज भी पासी समुदाय को गर्व और प्रेरणा देती है।

अपने पासी समाज का गौरवशाली इतिहास जानने के लिए आप हमारे साथ जुड़ें PasiSamaj.in पर। “जय पासी समाज”

पासी समाज का गौरवशाली इतिहास जानें : 

यह भी समझें – Pasi Samaj का अर्थ क्या है?

संदर्भ (Reference):

  1. प्राथमिक स्रोत: उपयोगकर्ता द्वारा प्रदान की गई जानकारी, दिनांक 02 अप्रैल 2025, जिसमें महाराजा डालदेव पासी, उनके भाइयों (बालदेव, ककोरन, भावों), उनके राज्य डलमऊ, और इब्राहीम शाह शर्की के आक्रमण का वर्णन शामिल है।
    • विवरण: “राय बरेली के पासी राजा डालदेव का राज्य डलमऊ में था ये चार भाई थे, डालदेव, बालदेव और ककोरन और राजा भावों। राजा डालदेव ने अपना राज्य चारों भाइयों में बांटकर एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की थी…” (उपयोगकर्ता इनपुट का मूल पाठ)।
  2. द्वितीयक स्रोत: लोककथाएँ और मौखिक परंपराएँ, जो पासी समाज और रायबरेली क्षेत्र में प्रचलित हैं, विशेष रूप से डलमऊ और सई नदी के किनारे बने किलों के ऐतिहासिक महत्व के बारे में।
  3. सामान्य ज्ञान: मध्यकालीन भारत का ऐतिहासिक संदर्भ, जिसमें जौनपुर के शर्की वंश (1402-1440) और क्षेत्रीय शासकों के बीच संघर्ष शामिल हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top